
02 अगस्त मंगलवार नागपंचमी पर्व पर विशेष।
जम्मू कश्मीर : नागलोक के राजा वासुकि जी भगवान शिव के परम भक्त है। भगवान शिव ने वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था और भगवान शिव के साथ हमेशा के लिए हो गये। जम्मू की लोक परम्पराओं में मान्यता है कि वासुकि नाग की वंश परम्परा में से जम्मू कश्मीर के कई स्थानों में नागों ने अपना निवास स्थान बनाया। इस विषय में श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ने बताया प्रदेश (डुग्गर) के प्राचीन इतिहास में नागराज वासुकि की वंश परम्परा में काई,भैड़,कैलख,सुरगल,तालान,मानसर, रचिल नामक 22 पुत्र,चौरासी पुत्री पौत्रों का वर्णन मिलता है, इन सब में बड़े पुत्र का नाम है “काई” देव और छोटे हैं “भैड़” देव । यह सब इच्छाधारी नाग देवता हैं,वासुकिवंशी नागों के जम्मू में निवास करने संबंधी एक दंत कथा प्रसिद्ध है।
वासुकि नाग जी का मंदिर भद्रवा गांठा जम्मू कश्मीर में है,वासुकि नाग जी एक बार चर्म रोग से पीड़ित हुए और उन्होंने अपने वैद्य को बुलाया और उन्हें बताया मुझे चर्म रोग हो गया है मेरा उपचार करें,वैद्य ने वासुकि नाग जी को कहा जो आपके कुल से कैलाश पर्वत से नदी रूप में जल लेकर आयेगा उस नदी में आप स्नान करेगें फिर आप ठीक होंगे। वासुकि नाग जी ने अपने परिवार की सभा बुलाई और कहा मुझे चर्म रोग हो गया है जो कैलाश पर्वत से नदी रूप में जल लेकर आयेगा उस नदी में मै स्नान करूंगा फिर मेरा स्वास्थ्य ठीक होगा और जो कैलाश पर्वत से पहले जल लेकर आयेगा उसे जम्मू का राज्य भेंट स्वरूप दिया जायेगा। यह बात सुनकर सभी कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े वासुकि नाग जी को अपने छोटे पुत्र भैड़ देव जी से बहुत प्यार था,वासुकि नाग जी ने अपनी मायाविशक्ति से भेड़ देव जी को तवी नदी पहले बहा कर दे दी,जब काई देव को पता चलता है तो उन्होंने अपने पिता से कहा पिता जी आपने पक्षपात किया है और हम आप से युद्ध करेगें वासुकि देव जी ने कहा आपको युद्ध करने की कोई ज़रूरत नहीं है आप जिस स्थान पर अपना पानी बहाओगे वो आपका राज्य होगा। काई
देव ने चंद्रभागा अखनूर में,बावा कैलख देव ठठर जम्मू में,बावा भैड़ देवजी का मंदिर जम्मू से लग भग 15 किलोमीटर नगरोटा और नगरोटा से 5 किलोमीटर एक तरफ कट्टर बटाल नाम के गाँव है,उसके आगे 2 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है,और जम्मू में कुछ बावली,किसी ने तालाब,नदी रूप में जहां जहां अपना जल बहाया वह उनका निवास स्थान हो गया ।
जब वासुकि के परिवार के साथ – साथ राज्य बटां तो वासुकि को बहुत बड़ा संताप हुआ,डोगरी के कारकों में वासुकि का दुख आज भी सुनाई पड़ता है।
जम्मूआ दा टिक्का भैड़ गी मिल्या,अखनूरे दा राजा काई।
वणडी दिता ए राज जम्मूआ दा, वासुक आखेआ न पाआ दुआई।
जैसे लोकगीतियो में भी वर्णित है।
जम्मूआ दा टिक्का भैड़ गी मिल्या,अखनूरे दा राजा काई।
बिच तवी दे भैड़ बसदा अखनूर बसदा काई।
बिच जम्मूआ मिटठा पीर बसदा, बाबै कालका माई।
उपसंहार :
पौराणिक कथाओं, लोकोक्तियों एवं आख्यानों से स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि सर्प हर तरह से मानव जाति के लिए उपकारी रहे हैं, हम वैदिक काल से लेकर आज तक के अन्यान्य उदाहरण,कथानक या प्रसंगों पर ध्यान दे तो ऐसे बहुत उदाहरण मिल जाएगें जिनसे सर्पों के प्रति मानवीय क्रूरता प्रकट होती है। भारत के किसी भी कोने में कहीं भी ऐसी कथा नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि सर्पों ने कभी मानव जाति को भयभीत किया हो।आज का विज्ञान भी कृषकों,ग्रामीणों, सामाजिक संस्थाओं एवं बुद्धिजीवियों से सर्पों की रक्षा हेतु उपाय करने का आह्वान
करता है। हमारे धर्मग्रंथों ने सहस्त्रों उदहारणों में सर्पों को मानव का अभिन्न मित्र व्यक्त किया है।
अतः हम यह संकल्प लें कि किसी भी प्रकार से सर्पों (नागों) की हत्या नहीं करेगें।उनके प्रति क्रूरता त्यागेंगे,वे अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए कभी गलती से काटते हैं उनका स्वभाव हमलावर नहीं होता है, विज्ञान तो कहता है कि 80 प्रतिशत से अधिक सर्पों में विष नहीं होता है।अतः आवश्यकता है प्रकृति के और हमारे इस अभिन्न मित्र को बचाने की।
संपर्क सूत्र :- महंत रोहित शास्त्री। 7006711011,9858293195